श्री नित्यानंद स्वामी महाराज का परिचय
श्री केशवराव वामनराव देशमुख एक जागीरदार परिवार में पैदा हुए। इन्हे तीन भाई थे। जब वे छोटे थे तभी उनकी पिता की मृत्यु हुई पिता के मरने के बाद कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा इनकी जमीन जायदाद हड़प कर ली गई। इनके पिताजी के पास पाँच गांवो की जागीरदारी थी जिसके तहत टैक्स वसूली करके निजाम के खजाने में भरना होता था। उस समय हैदराबाद के निजाम की सल्तनत थी ।
माँ दुर्गा भवानी के परम भक्त
केशवराव देशमुख माँ दुर्गा भवानी के परम भक्त थे, वे नवरात्री के उपवास रखते थे एवं माता की आराधना करते थे। एक नवरात्री में जब वे माता की आराधना कर रहे थे तब उनकी ऑंख लग गई, इसी दौरान उन्हें माता के दर्शन हुए और माता ने उन्हे बताया कि मैं यहॉ घोटा में जमीन के नीचे , मुझे बाहर निकालों ।
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माता का दर्शन और आदेश
तद्नुसार केशवराव ने जमीन खोदकर देखा तो काले पत्थर की चतुर्भूज मूर्ति मिली, जो शेर पर सवार है और महिषासुर का वध कर रही है। मूर्ति को बाहर निकाला गया और श्री केशवराव के घर लाया गया। इसके बाद उन्हें सपना आया कि मुझे तुम्हारे घर में नही रहना है, मेरा मंदिर बनावाओ ।
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मंदिर निर्माण का संकल्प
केशवराव ने माँ से कहा कि माँ में दरिद्री ब्राह्मण हूं, इतना धन कहाँ से लांऊगा? माता ने कहा उसकी चिंता तुम छोड़ो, सिर्फ हाँ कहो। तो केशवराव ने हॉ कहा।
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माँ का चमत्कार - जागीरदारी की वापसी
हड़पी हुई जायदाद का मुकदमा निजाम के दरबार में हैंदराबाद में चल रहा था। माँ तुलजा भवानी की प्रतिमा जमीन से बाहर निकालने के बाद मुकदमे कि जो तारीख पड़ी उस तारीख को हैदराबाद के निजाम ने फैसला केशवराव के हक दिया। यह माँ का ही चमत्कार एवं सत्य की विजय थी जिसके अनुसार केशवराव को उनके पिता की जागीरदारी मिली जमीन जायदार वापस मिली व एरियर्स के रूप में धन प्राप्त हुआ।

श्री नित्यानंद स्वामी महाराज
मंदिर के संस्थापक और माँ तुलजादेवी के भक्त

मंदिर का इतिहास
श्री नित्यानंद स्वामी महाराज द्वारा स्थापित मंदिर
जमीन जायदाद वापस मिलने के बाद केशवराव ने अपनी निजी जमीन मंदिर के लिये दी एवं उस पर मंदिर बनाया। साथ ही देवी की पूजा अर्चना, नवरात्री उत्सव, भंडारे आदि के लिये ----- एकड़ कृषि भूमि दान में दी जो आज भी श्री तुलजाभवानी के नाम पर पंजीकृत है माता की पूजा, अभिषेक तथा अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के लिये दो ब्राह्मण बाहर से लाकर घोटा ग्राम में बसाये और उन्हे भी प्रत्येक को ----- एकड़ कृषि भूमि दी जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी उपयोग कर सकते है बशर्ते कि उनकी पीढ़ियाँ माता की सेवा करें। इसके अलावा एक सेवक नियुक्त किया जिसका कार्य मंदिर की सफाई, कार्यक्रमों में सेवाभाव से योगदान देना व दर्शनार्थी भक्तजनों को सहयोग देना इत्यादि है। यह सब करने के लिए उसे भी --- एकड़ कृषिभूमि दान में दी गई है। उक्त व्यवस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है।
दूरदृष्टि और भक्ति का उदाहरण
श्री केशवराव देशमुख की दूरदृष्टि सोच एवं भक्ति को नि: संशयरूप से दाद देनी होगी कि उन्होंने स्वयं की भूमि पर मंदिर बनाया व माँ तुलजाभवानी की पूजा अर्चना के लिये स्वयं की कृषि भूमि भी दान दी ताकि भविष्य में किसी के आगे हाथ फैलाना ना पडे। अौर इतना करने के बाद, स्वयं का कोई भी प्रचार नही कराया और माता के चरणों में समाधी लेकर प्राण त्याग दिये। स्वामी महाराज के समाधी लेने के पश्चात इस मंदिर की देखरेख का कार्य स्वामी महाराज के वंशज (देशमुख परिवार) द्वारा बाद के कई वर्षो तक किया गया । वर्तमान में यह व्यवस्था श्री तुलजादेवी संस्थान घोटा जिला हिगोंली ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है जिसका पदेन अध्यक्ष जिले का तहसीलदार होता है।